बिलासपुर: शिक्षाकर्मी वर्ग-3 की नियुक्तियों में भ्रष्टाचार,आदिवासी विभाग के रिटायर्ड अधिकारी सीएल. जायसवाल के खिलाफ चलेगा मुकदमा

वरिष्ठ पत्रकार कमलेश शर्मा की रिपोर्ट

स्पेशल कोर्ट बलरामपुर ने 27 जून 2018 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और आईपीसी की धारा 120-बी के तहत आरोप तय करते हुए सीएल जायसवाल के खिलाफ मुकदमा चलाने का दिया था आदेश 

हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को सही ठहराया और सीएल जायसवाल की याचिका की खारिज

 

बिलासपुर: शिक्षाकर्मी वर्ग-3 की नियुक्तियों में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के गंभीर आरोपों का सामना कर रहे जनपद पंचायत वाड्रफनगर के तत्कालीन सीईओ और आदिवासी विभाग के रिटायर्ड अधिकारी सीएल. जायसवाल के खिलाफ अब स्पेशल कोर्ट में मुकदमा चलाने का रास्ता साफ हो गया है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने उनके खिलाफ दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया, जिससे उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की प्रक्रिया तेज हो गई है।

यह मामला 1998 का है, जब राज्य सरकार ने शिक्षाकर्मी वर्ग-3 की भर्ती प्रक्रिया शुरू की थी। इस प्रक्रिया में वाड्रफनगर के सीईओ को चयन समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। आरोप है कि जायसवाल ने अपनी अध्यक्षता में भर्ती प्रक्रिया में अनियमितताएं कीं और अपने रिश्तेदारों तथा चहेतों को लाभ पहुंचाया।

इसके बाद सरगुजा कलेक्टर ने एक जांच समिति गठित की, जिसने अपनी रिपोर्ट में यह पुष्टि की कि चयनित अभ्यर्थियों के पास आवश्यक योग्यता नहीं थी और पूरी भर्ती प्रक्रिया में नियमों का उल्लंघन किया गया। इसके बाद एसीबी और ईओडब्ल्यू ने मामले की जांच शुरू की। जांच में यह सामने आया कि चयन समिति के 9 सदस्यों ने नियमों को नजरअंदाज करते हुए भर्ती की थी, और ओबीसी और अनुसूचित जाति वर्ग की सूची में भी बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां हुईं।

स्पेशल कोर्ट बलरामपुर ने 27 जून 2018 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और आईपीसी की धारा 120-बी के तहत आरोप तय करते हुए सीएल. जायसवाल के खिलाफ मुकदमा चलाने का आदेश दिया था। इस आदेश को चुनौती देते हुए जायसवाल ने हाई कोर्ट में आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की थी, जिसे अब खारिज कर दिया गया है।

हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान, जायसवाल के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उनका स्थानांतरण भर्ती प्रक्रिया के दौरान हुआ था और चयन में उनकी कोई भूमिका नहीं थी। हालांकि, राज्य सरकार के विधि अधिकारियों ने यह तर्क दिया कि चयन समिति के अध्यक्ष के रूप में जायसवाल की भूमिका थी और उनके द्वारा दस्तावेजों में हेरफेर और रिश्वत लेकर चयन किए जाने के प्रमाण भी मिले हैं।

हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद ट्रायल कोर्ट के आदेश को सही ठहराया और जायसवाल की याचिका खारिज कर दी। इसके साथ ही उन्हें पूर्व में मिली अंतरिम राहत भी समाप्त कर दी गई। अब, उनके खिलाफ मुकदमा स्पेशल कोर्ट में चलेगा।

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