क्या राशन माफियाओं का नेटवर्क अफसरों की छांव में फल-फूल रहा है?”
फूड विभाग में कौन है ऋषि उपाध्याय का रिश्तेदार? बना चर्चा का विषय!
क्या सत्यशीला उपाध्याय, पुष्पा दीक्षित और ऋषि उपाध्याय को बचाने की हो रही है कोशिश?
बिलासपुर जिले के मगरपारा क्षेत्र में संचालित जय महालक्ष्मी महिला स्व-सहायता समूह की शासकीय उचित मूल्य दुकान में सरकारी चावल की कालाबाजारी और रुपये लेकर राशन न देने की पुष्टि के बावजूद अब तक आरोपियों को जेल नहीं भेजा गया है। जबकि इसी तरह के मामले में जांजगीर-चांपा का जिला प्रशासन ने तत्परता दिखाते हुए गबन करने वाले आरोपियों को सीधे सलाखों के पीछे पहुंचा दिया।
बिलासपुर का मामला
वार्ड क्रमांक 23, मगरपारा की दुकान (ID: 401001096) में खाद्य विभाग की जांच दिनांक 07जून 2025 को हुई थी। वायरल वीडियो और शिकायतों के आधार पर जांच में स्पष्ट हुआ कि दुकानदार चावल के बदले पैसे वसूल रहे थे। खाद्य शाखा, कलेक्टर कार्यालय द्वारा दिनांक 30जुलाई.2025 को दुकान को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया। लेकिन अब तक महिला समूह की अध्यक्ष सत्यशीला उपाध्याय, सचिव पुष्पा दीक्षित और विक्रेता ऋषि उपाध्याय पर आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 3/7 के तहत मामला दर्ज किया गया पर उनके खिलाफ FIR नहीं कराई गई है।
सवाल उठता है कि आखिर आरोपियों के खिलाफ FIR क्यों नहीं कराई जा रही है?
क्या ये किसी बड़े सत्ताधारी या प्रभावशाली व्यक्ति की शह पर हो रहा है?
जांजगीर-चांपा का उदाहरण
बम्हनीडीह ब्लॉक के बिर्रा रोड और कोटाडबरी में संचालित शासकीय उचित मूल्य दुकानों में नमक, शक्कर और केरोसिन के गबन का मामला सामने आया। खाद्य निरीक्षक सुशील विश्वकर्मा की टीम की कार्रवाई में स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष गंगाबाई खांडेकर, रितेश खांडेकर, रामेश्वर खांडेकर और पहले से गिरफ्तार सोहन यादव पर धारा 420, 409, 34 IPC व आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 3/7 के तहत एफआईआर दर्ज हुई और सभी को जेल भेजा गया।
क्यों दोहरा मापदंड?
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एक ओर जांजगीर पुलिस ने गबन करने वालों पर सख्त कार्रवाई करते हुए उन्हें जेल में डाला,
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दूसरी ओर बिलासपुर में कार्रवाई सिर्फ दुकान निलंबन तक सीमित रह गई है।
क्या बिलासपुर में शासन-प्रशासन आरोपियों को बचा रहा है?
क्या राशन चोरों पर सख्त कार्रवाई सिर्फ कुछ ही जिलों तक सीमित है?
विशेषज्ञों के अनुसार, इस मामले में के आरोपियों के खिलाफ FIR दर्ज कर आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा 3/7 के तहत आपराधिक धाराएं लगाई जाएं और उन्हें जेल भेजा जाए, ताकि जनकल्याण की योजनाओं से धोखा करने वालों को सख्त सजा मिले।
सूत्रों का दावा है कि यदि मामले में FIR होती है, तो ऋषि उपाध्याय विभाग के कई “काले चिट्ठे” उजागर कर सकता है।
यह भी सामने आया है कि वार्ड क्रमांक 23 की दुकान को किसी और वार्ड में जोड़ने की बजाय, उसे वार्ड 27 की उस दुकान से संलग्न किया गया है, जिसे ऋषि उपाध्याय के करीबी रिश्तेदार संचालित करते हैं। यह निर्णय भी संदेह के घेरे में है।















