
“मैं ओबीसी वर्ग से हूं, और अपने समाज के हक के लिए लड़ाई लडूंगी” – रेवती
बिलासपुर नगर निगम महापौर चुनाव 2024 इस बार न सिर्फ चुनावी दाव-पेंच, बल्कि जातीय आरक्षण और उम्मीदवारों की जाति प्रमाणिकता को लेकर भी खासा सुर्खियों में रहा। कांग्रेस प्रत्याशी द्वारा दाखिल याचिका ने इस चुनाव को एक कानूनी और सामाजिक बहस का मुद्दा बना दिया है।
इस पूरे विवाद पर अब 5 मई 2025 को जिला न्यायालय में सुनवाई होनी है। मामले की सुनवाई प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश सिराजुद्दीन कुरैशी की अदालत में होगी। याचिका क्रमांक चुनाव याचिका/1/2025 प्रमोद नायक बनाम एल. पदमजा उर्फ पूजा विधानी व अन्य के अंतर्गत यह सुनवाई रखी गई है।
इस बीच शिवसेना की प्रत्याशी रहीं रेवती यादव को भी कारण बताओ नोटिस भेजा गया है, जिसके जवाब में उन्होंने अपने पक्ष को मजबूती से सामने रखा है। उनका कहना है कि यदि राज्य शासन की मंशा वास्तव में ओबीसी वर्ग से महापौर चुनने की थी, तो नामांकन प्रक्रिया में केवल उन्हीं उम्मीदवारों को अनुमति दी जानी चाहिए थी जो राज्य की ओबीसी सूची में शामिल जातियों से संबंधित हैं।
रेवती यादव ने प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि उम्मीदवार की जाति की पुष्टि के लिए उसके स्कूल के दस्तावेजों की जांच की जा सकती थी, जिससे यह स्पष्ट हो जाता कि प्रत्याशी किस जाति से संबंधित है। उन्होंने यह भी मांग की है कि यदि वर्तमान महापौर की जातीय स्थिति ओबीसी वर्ग से नहीं पाई जाती है, तो चुनाव रद्द कर नए सिरे से चुनाव प्रक्रिया चलाई जाए।
उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि यदि ऐसी स्थिति में पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा करवा दिया गया, तो यह सीधे तौर पर जनता और ओबीसी वर्ग के साथ अन्याय होगा। रेवती यादव का कहना है, “मैं स्वयं ओबीसी वर्ग से आती हूं, और मैंने चुनाव के दौरान यह मुद्दा प्रमुखता से उठाया था, लेकिन राजनीतिक ताकतों की आंधी में मेरी ‘न्याय यात्रा’ को दबा दिया गया। अब मैं ओबीसी वर्ग के हक-अधिकारों की रक्षा हेतु न्यायिक लड़ाई लड़ने को तैयार हूं।”
कांग्रेस की ओर से दाखिल याचिका में 19 बिंदुओं के माध्यम से विस्तृत आपत्तियां दर्ज की गई हैं। अब पूरे शहर की निगाहें 5 मई की सुनवाई पर टिकी हैं, जहां अदालत यह तय करेगी कि क्या वाकई महापौर पद के लिए ओबीसी वर्ग का आरक्षण सही तरीके से लागू हुआ था या नहीं।
इस मामले से कई महत्वपूर्ण सवाल उठ खड़े हुए हैं:
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क्या सत्ता पक्ष न्यायिक प्रक्रिया को लंबा खींच कर महापौर का कार्यकाल पूरा करवा देगा?
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क्या ओबीसी वर्ग को उसका वास्तविक हक मिलेगा?
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और क्या न्याय व्यवस्था राजनीति से ऊपर उठकर निष्पक्ष फैसला दे पाएगी?
फिलहाल, जनता को 5 मई का इंतजार है।