
बिलासपुर। शिक्षा देने वाले संस्थान में ही भ्रष्टाचार का घिनौना चेहरा सामने आया है। मस्तूरी विकासखंड के शासकीय प्राथमिक शाला खपरी के शिक्षक संतोष कुमार साहू को चिकित्सा व्यय प्रतिपूर्ति के ₹1,87,459 की राशि जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा स्वीकृत की गई थी।
शिकायत के मुताबिक, 9 जुलाई रात 8:25 बजे, मस्तूरी BEO कार्यालय में पदस्थ सहायक ग्रेड-02 सी.एस. नौरके ने शिक्षक को फोन कर साफ कहा — “भुगतान चाहिए तो 10% कमीशन देना पड़ेगा।” रिश्वत से इनकार करने पर उनकी भुगतान फ़ाइल रोक दी गई। 15 जुलाई को सूची में शामिल बाकी सभी शिक्षकों को भुगतान कर दिया गया, लेकिन सिर्फ रिश्वत न देने की वजह से उनका पैसा अटका दिया गया।
पीड़ित शिक्षक ने कलेक्टर, जिला शिक्षा अधिकारी और मस्तुरी BEO से शिकायत की, जिसके बाद मस्तूरी BEO टंडन ने हस्तक्षेप कर राशि खाते में जमा करवाई।
लेकिन जब आरोपी बाबू पर कार्रवाई की बात पूछी गई, तो BEO शिवराम ने कहा —“DEO कार्यालय से फोन आया था, वहां से लेटर आने के बाद ही एक्शन लूंगा।”
शिकायत पत्र
सवाल
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जब रिश्वत मांगने का आरोप दर्ज है, तो क्या कार्रवाई के लिए ‘पत्राचार का बहाना’ ज़रूरी है?
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क्या शिक्षा विभाग में भ्रष्ट बाबुओं को बचाने के लिए ‘लेट-लेटेर’ की नीति अपनाई जा रही है?
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शिकायत के बाद भी तत्काल एक्शन न होना क्या सिस्टम की मिलीभगत नहीं है?
अगर ऐसे मामलों में तुरंत विभागीय जांच नहीं हुई, तो कमीशनखोरी के बाबू और बेखौफ़ होते जाएंगे — और ईमानदार कर्मचारी दबाव में रहकर अपनी नौकरी काटते रहेंगे।