
बिलासपुर: हाई कोर्ट ने एसबीआर कॉलेज मैदान की सेल डीड और उसकी बिक्री को अवैध घोषित कर इसे निरस्त कर दिया है। यह फैसला मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की डिवीजन बेंच ने शासन और बजाज बंधुओं की रिट अपील पर सुनवाई के बाद सुनाया। कोर्ट ने राज्य शासन को निर्देश दिया है कि जमीन का म्यूटेशन शासन के नाम विधि अनुरूप दर्ज किया जाए।
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Toggleमामला क्या है?
जरहाभाठा स्थित एसबीआर कॉलेज के सामने 2.38 एकड़ जमीन, जिसका उपयोग खेल मैदान के रूप में होता है, लंबे समय से विवादों में रही है। यह जमीन एसबीआर ट्रस्ट की थी, जिसे एक पारिवारिक ट्रस्ट ने 1975 में कॉलेज सहित सरकार को सौंप दिया था। हालांकि, कॉलेज के सामने की यह जमीन ट्रस्ट के स्वामित्व में बची रही।
बाद में ट्रस्ट के कुछ सदस्यों ने इसका सौदा भू-माफियाओं से कर लिया, जिसके विरोध में शासन और अन्य पक्षों ने आपत्ति जताई। राज्य सरकार ने इस जमीन को सरकारी संपत्ति बताते हुए इसे निजी हाथों में बेचने का विरोध किया।
हाई कोर्ट का फैसला
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की डिवीजन बेंच ने बहस सुनने के बाद सेल डीड और बिक्री को अवैध मानते हुए इसे निरस्त कर दिया। साथ ही, शासन को निर्देश दिया कि जमीन का म्यूटेशन कानूनन अपने नाम पर कराए।
राज्य सरकार की ओर से पेश एडवोकेट जनरल ने 1995-96 के राजस्व दस्तावेज पेश किए, जिनमें स्पष्ट था कि यह जमीन शासन की है। सरकार ने कोर्ट को बताया कि यह जमीन दान में दी गई थी और इसे बेचना अवैध है।
छात्रों और पूर्व छात्रों का विरोध
यह मामला तब और गर्माया जब स्थानीय छात्रों और पूर्व छात्रों ने मैदान की बिक्री का विरोध किया। एसबीआर कॉलेज, जिसे अब जेपी वर्मा कॉलेज के नाम से जाना जाता है, के छात्र नेताओं ने जिला प्रशासन और उच्च शिक्षा मंत्री को ज्ञापन सौंपा। छात्रों का कहना था कि खेल मैदान को व्यवसायिक उपयोग में बदलने की साजिश की जा रही है।
पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष शैलेंद्र यादव और अन्य छात्र नेताओं ने इस प्रयास को विफल करने में बड़ी भूमिका निभाई। उन्होंने मैदान को बचाने के लिए सरकार से जांच की मांग की थी।
ट्रस्ट और भू-माफिया की साजिश
मूल ट्रस्ट के सात सदस्यों को हटाकर नए सदस्यों के साथ मिलकर जमीन का सौदा करने की कोशिश की गई थी। एसडीएम कोर्ट ने इस पर रोक लगाई, लेकिन फिर भी खरीद-फरोख्त की प्रक्रिया जारी रही।
न्यायपालिका पर विश्वास की जीत
अतुल बजाज और उनके भाइयों ने कोर्ट का फैसला आने के बाद कहा, “हमें न्यायपालिका पर पूरा विश्वास था। यह जमीन हमारे पूर्वजों ने दान दी थी। भू-माफिया इसे कब्जा कर व्यावसायिक इस्तेमाल करना चाहते थे, लेकिन सच्चाई की जीत हुई।”
सरकार की सख्ती
हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब राज्य सरकार के लिए यह जिम्मेदारी है कि जमीन पर कब्जा लेने और म्यूटेशन प्रक्रिया को जल्द पूरा किया जाए।
निष्कर्ष
हाईकोर्ट के इस फैसले ने न केवल सरकारी संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित की, बल्कि छात्रों और स्थानीय नागरिकों की भावनाओं का भी सम्मान किया है। यह मामला न्याय और सच्चाई की जीत के रूप में देखा जा रहा है।