
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने सहकारिता विभाग के संयुक्त पंजीयक सुनील तिवारी के खिलाफ गंभीर आरोपों पर कार्रवाई न करने को लेकर सहकारिता विभाग के 5 वरिष्ठ IAS अधिकारियों को अवमानना नोटिस जारी किया है। इन अधिकारियों पर हाईकोर्ट के आदेश की अनदेखी और आरोपी अधिकारी को बचाने का आरोप है।
मामला क्या है?
शिकायतकर्ता विनय शुक्ला ने 2020 में शिकायत दर्ज कराई थी कि सुनील तिवारी, तत्कालीन संयुक्त पंजीयक, सहकारिता विभाग, ने अपनी जीवित पत्नी के रहते दूसरा विवाह किया और शासन की मंजूरी के बिना यह कदम उठाया। यह मामला सिविल सेवा आचरण नियम 1965 के नियम 22 और भारतीय दंड संहिता की धाराओं का उल्लंघन है।
शिकायत के बावजूद, विभाग ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की, जिससे शिकायतकर्ता ने 2021 में हाईकोर्ट में याचिका (W.P.C. No. 3097/2021) दायर की। 29 सितंबर 2023 को हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि 6 माह के भीतर आरोपी अधिकारी के खिलाफ जांच पूरी की जाए।
हालांकि, विभाग ने आदेश का पालन नहीं किया। इसके बाद शिकायतकर्ता ने 12 सितंबर 2024 को अवमानना याचिका (CONT/1140/2024) दाखिल की। हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद 8 अक्टूबर 2024 को 5 IAS अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
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नोटिस जारी IAS अधिकारी
- हिमशिखर गुप्ता, तत्कालीन सचिव, सहकारिता
- सीआर प्रसन्ना, वर्तमान सचिव, सहकारिता
- रमेश शर्मा, तत्कालीन पंजीयक, सहकारिता
- दीपक सोनी, तत्कालीन पंजीयक, सहकारिता
- कुलदीप शर्मा, वर्तमान पंजीयक, सहकारिता
आरोप और कोर्ट की कार्रवाई
शिकायतकर्ता का आरोप है कि विभागीय अधिकारियों ने न केवल हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना की, बल्कि आरोपी अधिकारी सुनील तिवारी को बचाने के लिए अपने पद का दुरुपयोग किया। इसके बावजूद कार्रवाई न होने पर हाईकोर्ट ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी कर पूछा है कि उनके खिलाफ न्यायालय अवमानना अधिनियम 1971 के तहत कार्रवाई क्यों न की जाए।
शिकायत के मुख्य बिंदु
- सुनील तिवारी ने जीवित पत्नी के रहते दूसरा विवाह कर सिविल सेवा आचरण नियम 1965 का उल्लंघन किया।
- विभागीय अधिकारियों ने शिकायत पर कार्रवाई करने के बजाय आरोपी को बचाने का प्रयास किया।
- हाईकोर्ट के आदेश का पालन न कर, विभागीय अफसरों ने न्यायालय की अवमानना की।
अगली कार्रवाई
उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार व्यास ने 5 IAS अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। मामले की अगली सुनवाई जल्द निर्धारित की जाएगी।
निष्कर्ष
यह मामला प्रशासनिक भ्रष्टाचार और कर्तव्य पालन में लापरवाही का गंभीर उदाहरण है। हाईकोर्ट का यह कदम अधिकारियों की जवाबदेही तय करने और शासन में पारदर्शिता लाने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।