लेटेस्ट अपडेट- बिलासपुर हादसे में 6 की मौत, 5 घायल
बिलासपुर स्टेशन के पास हुई मालगाड़ी और मेमू लोकल की टक्कर सिर्फ एक दुर्घटना नहीं, बल्कि रेलवे प्रशासन के दावों पर सीधा तमाचा है। हादसा ‘अप्रत्याशित’ बताया जा रहा है—लेकिन क्या सच में? ट्रैक पर दो ट्रेनें आमने-सामने कैसे आईं? सिग्नलिंग सिस्टम कहां सो रहा था? जिम्मेदार कौन है—और जवाबदेही किसकी तय होगी?
रेल प्रशासन ने मृतकों के परिजनों को 10 लाख, गंभीर घायलों को 5 लाख और सामान्य घायलों को 1 लाख की आर्थिक सहायता की घोषणा की है। यह सराहनीय है, लेकिन यह रकम उन सवालों का जवाब नहीं कि ऐसी दुर्घटनाएं होती क्यों हैं? हर हादसे के बाद मुआवजा, जांच और वादे—क्या यही नया सिस्टम है?
वरिष्ठ अधिकारी पहुंच गए, राहत बचाव जारी है—बिल्कुल होना चाहिए। परंतु बार-बार होने वाले रेल हादसे यह दर्शाते हैं कि सुरक्षा उपाय कागजों पर ही ‘तेज रफ्तार’ हैं। नए-नए प्रोजेक्ट्स के नाम पर हजारों करोड़ खर्च होते हैं, लेकिन यात्रियों की सुरक्षा क्यों ‘खंडहर’ बनी पड़ी है?
रेलवे सुरक्षा आयुक्त (CRS) जांच करेंगे—परिणाम क्या?
क्या जमीनी स्तर पर बदलाव होंगे या यह भी पुराने फाइलों की तरह धूल खाएगा?
कितनी जांचों ने क्या सुधारा है?
कितने जिम्मेदारों पर कार्रवाई हुई?
कितनी बार जनता को उसके सवालों के जवाब मिले?
मुख्य सवाल —
-क्या सिग्नलिंग में चूक थी?
-ड्राइवर की गलती या कंट्रोल रूम की लापरवाही?
– रखरखाव (Maintenance) में कोताही?
-सुरक्षा मानकों की अनदेखी का परिणाम?
रेलways Helpline जारी कर देती है। अस्पताल भेज देती है। लेकिन असली सवाल—हादसा रोकने के लिए क्या किया?
हर बार की तरह इस दुर्घटना की भी जांच होगी, रिपोर्ट आएगी, और कागजों में सब कुछ ‘क्लोज’ हो जाएगा। मगर पीड़ित परिवारों के लिए हादसा कभी बंद नहीं होता।
यह समय सिर्फ राहत की खबरें बताने का नहीं—बल्कि जिम्मेदारों को कटघरे में खड़ा करने का है।
क्योंकि पटरी पर लापरवाही का अनियंत्रित पहिया आम नागरिकों की जान कुचल रहा है।
रेल प्रशासन को जवाब देना ही होगा—
क्योंकि यात्रियों की जान कोई मुआवजे की रसीद नहीं, एक अनमोल सत्य है।














