
मंत्री जी! इस मामले को आप भी संज्ञान में लीजिए, दोषियों को भेजें जेल
बिलासपुर में हुआ शासकीय भूमि घोटाला एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करता है कि जब व्यवस्था के रक्षक ही नियमों को ताक पर रख कर कार्य करें, तो जनहित की उम्मीद कहाँ टिकती है? “न्यूज़ हब इनसाइट” ने जिस प्रमाण-आधारित रिपोर्ट को जनता के सामने रखा है, वह केवल दो अधिकारियों के भ्रष्ट आचरण का मामला नहीं, बल्कि उस प्रशासनिक शिथिलता का भी आईना है, जो समय रहते सख्त कार्रवाई नहीं कर पाती।
हमारे हाथ लगे दस्तावेज़ इस बात की पुष्टि करते हैं कि तत्कालीन राजस्व अधिकारी शेष नारायण जायसवाल और शशि भूषण सोनी ने शासकीय भूमि को कॉलोनाइज़रों के लाभार्थ अवैध रूप से उपयोग की अनुमति दी — बिना आवश्यक प्रक्रिया और विभागीय स्वीकृति के। गायत्री कंस्ट्रक्शन, श्रीराम सरिता बिल्डर्स और राज कंस्ट्रक्शन जैसे निजी संस्थानों को सरकारी ज़मीन पर कॉलोनी का रास्ता दिलवा कर नियमों की खुलेआम अवहेलना की गई।
यह मामला और अधिक गंभीर तब हो जाता है जब पता चलता है कि तत्कालीन कलेक्टर अवनीश शरण ने स्वयं पूरे तथ्यों के साथ कमिश्नर को दोषियों के निलंबन हेतु प्रस्ताव भेजा, लेकिन आज तक आरोप पत्र जारी नहीं हो सका। यह सिर्फ कार्रवाई में देरी नहीं, बल्कि प्रशासनिक उदासीनता और जवाबदेही के अभाव का घातक उदाहरण है।
नए कमिश्नर सुनील कुमार जैन द्वारा स्वयं नए कलेक्टर को फोन कर आरोप पत्र जल्द भेजने के निर्देश देना यह दर्शाता है कि ऊपरी स्तर पर तो संज्ञान लिया जा रहा है, पर नीचले स्तर पर कार्रवाई की इच्छाशक्ति नहीं दिखती। जब तक ऐसे मामलों में समयबद्ध, पारदर्शी और कानूनी प्रक्रिया के तहत कार्रवाई नहीं होती, तब तक भ्रष्टाचार की जड़ें और गहरी होती रहेंगी।
क्या होना चाहिए?
-
कमिश्नर स्तर पर तत्काल विशेष जांच समिति का गठन हो।
-
आरोपियों के विरुद्ध आर्थिक हानि की वसूली की प्रक्रिया शुरू हो।
- इस प्रकरण को नज़ीर बनाकर, हर जिले में शासकीय भूमि आवंटन की समीक्षा हो।
जनता यह जानना चाहती है कि सरकार की ज़मीन आखिर किसके लिए है — जनता के लिए या कुछ चुनिंदा बिल्डरों के लिए? अगर प्रशासन सच में भ्रष्टाचारमुक्त शासन का दावा करता है, तो यह उसकी परीक्षा की घड़ी है।
“न्यूज़ हब इनसाइट” यह स्पष्ट करना चाहता है कि हम भविष्य में भी इस मामले की सतत निगरानी करते रहेंगे। हमारी प्रतिबद्धता एक ऐसी पत्रकारिता के प्रति है, जो न सिर्फ सवाल उठाए, बल्कि समाधान की ओर भी संकेत करे।
न्याय की राह आसान नहीं होती, लेकिन उसे चुनना ही सच्चे लोकतंत्र की पहचान है।