
मुख्यमंत्री जी! गलत कार्य को खुलेआम अंजाम देने वाले कांग्रेस नेता कमल सिंह ठाकुर और धर्मेश शर्मा को बचाने वाले अधिकारियों को करें सस्पेंड
एसपी रजनेश सिंह की सिविल लाइन पुलिस ने मामले की पूरी जानकारी नहीं दी; संदेश दिया कि “हमारी मर्जी होगी तो जानकारी देंगे, नहीं तो कोई भी कारण बताकर अधूरी जानकारी देंगे”
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के कार्यालय से षड्यंत्रपूर्वक एफडीआर चोरी के मामले में शामिल ठेकेदार कमल सिंह ठाकुर (कांग्रेस नेता) और संबंधित बाबू पर निगम कमिश्नर अमित कुमार क्यों हैं इतने मेहरबान?
बिलासपुर। भाजपा सरकार के बड़े नेता प्रदेश में सरकार एक साल पूरा होने पर जहां एक ओर वो अपनी उपलब्धियों को लेकर जश्न मना रहे हैं और प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपना रिपोर्ट कार्ड पेश कर रहे हैं, वहीं, दूसरी ओर पुलिस और निगम प्रशासन के कुछ अधिकारियों की मनमानी से इसमें पलीता लगना लाजमी है. इससे धरातल पर सच्चाई कुछ और ही नजर आने लगती है। हाल ही में कांग्रेस के दो नेताओं, कमल सिंह ठाकुर और धर्मेश शर्मा के खिलाफ उठे मामलों ने पुलिस और निगम प्रशासन की कार्यप्रणाली और उनकी जवाबदेही पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
कमल सिंह ठाकुर: गुणवत्ताहीन सड़क और FDR घोटाले का मामला
कांग्रेस नेता और ठेकेदार कमल सिंह ठाकुर इन दिनों नेहरू नगर में गुणवत्ताहीन सड़क निर्माण और स्मार्ट सिटी कार्यालय से एफडीआर (FDR) गायब करने के मामले में विवादों में घिरे हुए हैं। क्रिमिनल लॉ के अनुसार, इस प्रकार के घोटाले पर धारा 420 के तहत मामला दर्ज होना चाहिए था।
हालांकि, स्मार्ट सिटी के एमडी अमित कुमार ने इस गंभीर मामले में केवल लेवल पेनाल्टी लगाई और दोषियों पर आपराधिक मामला दर्ज नहीं करवाया। इस कार्रवाई से प्रशासनिक लापरवाही और प्रभावशाली लोगों को संरक्षण देने के आरोप और पुख्ता हो रहे हैं।
धर्मेश शर्मा: छत्तीसगढ़ भवन में पार्टी का मामला
दूसरे मामले में, कांग्रेस नेता धर्मेश शर्मा पर अपने साथियों के साथ छत्तीसगढ़ भवन में अनुमति के बिना शराब और नॉनवेज पार्टी करने का आरोप है। बताया जा रहा है कि नॉनवेज भवन के किचन में ही तैयार किया गया था। पुलिस के छापे के दौरान भाजपा का एक नेता भाग खड़ा हुआ, जबकि धर्मेश शर्मा, शरद शर्मा, संजय माहेश्वरी और एसके तिवारी को मौके पर पकड़ा गया।
पुलिस की चुप्पी और प्रशासनिक सवाल
मामले को लेकर पुलिस ने कोई प्रेस विज्ञप्ति जारी नहीं की और फोटो देने से भी इनकार कर दिया। सीएसपी निमितेश सिंह ने यह तर्क देकर फोटो नहीं दिए कि इसमें वे लोग भी हैं जो शराब नहीं पिये थे। इस संदर्भ में एसपी रजनेश सिंह और उनकी टीम की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं।
बिना अनुमति के प्रवेश कैसे?
सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि छत्तीसगढ़ भवन में बिना एसडीएम की अनुमति के प्रवेश संभव नहीं है, तो धर्मेश शर्मा और उनके साथियों को दारू-मुर्गा पार्टी की अनुमति किसने दी?
प्रशासन की कार्यशैली पर उठे सवाल
इन दोनों मामलों ने न केवल कांग्रेस नेताओं की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि प्रशासन और पुलिस विभाग की निष्पक्षता पर भी सवालिया निशान लगा दिया है। सरकार और प्रशासन की चुप्पी से आम जनता में नाराजगी और विश्वासघात का माहौल बनता नजर आ रहा है।
यह रिपोर्ट दोनों मामलों में प्रशासनिक लापरवाही और प्रभावशाली लोगों को बचाने के प्रयासों की ओर इशारा करती है।