
खमतराई के खसरा नंबर 559 की शासकीय भूमि के सीमांकन के दौरान आसपास के भूमि मालिकों को नहीं बुलाया गया और बना दी गई रिपोर्ट, राजस्व अधिकारियों का षड्यंत्र हुआ उजागर
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बिलासपुर: खमतराई के खसरा नंबर 559 की शासकीय जमीन पर कब्जे को लेकर जहां एक ओर राजस्व विभाग पर सवाल खड़े हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इस जमीन के सीमांकन की प्रक्रिया को लेकर भी गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं। मोहल्लेवासियों का कहना है कि सीमांकन के दौरान उन्हें गुपचुप तरीके से बाहर किया गया और सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
स्थानीय लोगों के मुताबिक, सामान्य रूप से जब भी किसी भूमि का सीमांकन किया जाता है, तो आसपास के लोगों को सूचना दी जाती है और उनकी सहमति के लिए हस्ताक्षर लिए जाते हैं। लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ। जमीन से लगी दूसरे खसरों के जमीन मालिको का आरोप है कि उन्हें इस सीमांकन की जानकारी नहीं दी गई और न ही उनके हस्ताक्षर लिए गए। यहां तक कि जिन लोगों के हस्ताक्षर लिए गए, वे उस जमीन के अगल-बगल के क्षेत्र में रहते ही नहीं हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सीमांकन रिपोर्ट नियमों का उल्लंघन कर बनाई गई है।
मोहल्लेवासियों का आरोप
मोहल्लेवासियों ने कहा, “हमारे पास पूरी जानकारी है कि सीमांकन के समय कई लोग जो यहां के निवासी नहीं हैं, उनके दस्तखत लिए गए। यह पूरी प्रक्रिया संदेहास्पद है और किसी योजना के तहत की गई। हमें यह नहीं बताया गया कि यह प्रक्रिया कब हुई और हमसे क्यों संपर्क नहीं किया गया।”
नियमों का उल्लंघन
वहीं, कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि भूमि के सीमांकन के दौरान जो नियम हैं, उनके मुताबिक संबंधित अधिकारियों को स्थानीय लोगों को सूचित करना और उनके हस्ताक्षर लेना जरूरी होता है। इस प्रक्रिया को पारदर्शिता के साथ संपन्न किया जाना चाहिए ताकि किसी भी विवाद से बचा जा सके। मोहल्लेवासियों का कहना है कि इस बार इन नियमों की पूरी तरह से अनदेखी की गई है, और यह किसी के व्यक्तिगत फायदे के लिए किया गया हो सकता है।
अब तक की स्थिति
इस मामले में जब मीडिया ने संबंधित अधिकारियों से पूछताछ की तो हड़कम्प मच गया और मोहल्लेवासियों के विरोध के बाद अब उच्च अधिकारियों ने मामले की जांच के आदेश दिए हैं।
इस पूरे घटनाक्रम से यह जाहिर होता है कि प्रशासन को भूमि सीमांकन जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं में पारदर्शिता बनाए रखते हुए लोगों को उचित सूचना देना जरूरी है। अगर मोहल्लेवासियों के आरोप सही साबित होते हैं, तो यह प्रशासन की लापरवाही और नियमों के उल्लंघन का गंभीर मामला बन सकता है।