हाई कोर्ट की चेतावनी और जनता की सुरक्षा के बावजूद, पुलिस ने गंभीर धाराओं की बजाय जमानती धाराएं क्यों लगाईं?
मामला सिर्फ़ स्टंटबाजी नहीं, सिस्टम की पोल खोलता है
बिलासपुर। हाई कोर्ट की कड़ी चेतावनी और सख्त निर्देशों के बावजूद बिलासपुर में रईसजादों की दबंगई थमने का नाम नहीं ले रही। मस्तूरी थाना क्षेत्र के दरीघाट एनएच–49 पर बुधवार देर रात लग्जरी कारों का काफिला फिल्मी अंदाज़ में दौड़ा, इससे हाईवे जाम हुआ, युवक खिड़कियों से लटककर रील बनाते रहे। पुलिस ने स्टंट कर रहे युवकों को पकड़ा और बाद में छोड़ दिया.
लेकिन इसके बाद जो हुआ उसने पूरे पुलिस सिस्टम की साख पर सवाल खड़े कर दिए। जमानती धाराएं लगाकर आरोपियों को रातभर थाने में बैठाने के बाद छोड़ दिया गया। अब पुलिस दावा कर रही है कि युवकों को दोबारा पकड़ने के लिए टीम लगा दी गई है।
सूत्रों के मुताबिक, इस कार्रवाई में लेन–देन भी हुआ और एक रसूखदार युवक का नाम एफआईआर में दर्ज नहीं किया गया क्योंकि उसके पिता एक रिटायर्ड पुलिस अफसर के खास दोस्त बताए जाते हैं।
क्या ऐसे मामलों में रसूख के सामने पुलिस बेबस होती जा रही है?
यह घटना सिर्फ़ ट्रैफिक उल्लंघन का मामला नहीं है, बल्कि कानून की साख और निष्पक्षता का बड़ा इम्तिहान है।
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जब युवकों और उनकी गाड़ियां मौके से पकड़ाई थीं, तो उन्हें थाने से छोड़ा ही क्यों गया?
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हाई कोर्ट की चेतावनी और जनता की सुरक्षा के बावजूद, पुलिस ने गंभीर धाराओं की बजाय जमानती धाराएं क्यों लगाईं?
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अगर आम युवक होते, तो क्या उन्हें भी इतनी आसानी से छोड़ दिया जाता?
यह पहली बार नहीं है जब बिलासपुर पुलिस पर रसूखदारों को बचाने का आरोप लगा हो। यह सवाल अब सीधा खड़ा है कि क्या पुलिस विभाग खुद को “कानून से ऊपर” समझने वालों के दबाव में है?
मामला सिर्फ़ स्टंटबाजी नहीं, सिस्टम की पोल खोलता है
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कानूनी कमजोरी – जानलेवा स्टंटबाजी, हाईवे जाम और सार्वजनिक सुरक्षा को खतरे जैसे मामलों में सख्त धाराएं लगनी चाहिए थीं, लेकिन पुलिस ने इसे हल्के में लिया।
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रसूख का खेल –सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, एक युवक का नाम एफआईआर से गायब होना इस बात का सबूत है कि प्रभावशाली परिवारों को बचाने का खेल अब भी जारी है।
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पुलिस की दोहरी भूमिका – पहले पकड़ना, फिर छोड़ना और अब दोबारा पकड़ने की कवायद करना महज़ डैमेज कंट्रोल है, ताकि जनता और मीडिया के दबाव को शांत किया जा सके।
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जनता का विश्वास – हर बार ऐसे मामलों में पुलिस की ढिलाई जनता में यह संदेश देती है कि कानून आम आदमी पर चलता है, लेकिन रसूखदारों के लिए अलग नियम हैं।
सबसे बड़ा सवाल
अगर पुलिस ही हाई कोर्ट के आदेशों और जनता के भरोसे की रक्षा नहीं कर पाएगी, तो क्या फिर यह माना जाए कि बिलासपुर में कानून कमजोर और रसूखदार ताकतवर हैं?
यह रिपोर्ट न सिर्फ़ एक घटना को उजागर करती है बल्कि पूरे सिस्टम की मानसिकता पर चोट करती है। अगर इस बार भी दोषियों पर कड़ी कार्रवाई नहीं हुई, तो यह साफ संदेश जाएगा कि पुलिस महज़ दिखावे की कार्रवाई करती है और असलियत में रसूख के सामने घुटने टेक देती है।















