मुंगेली नाका का मैदान जहाँ पाँच हजार की क्षमता में हजारों कुर्सियाँ सजी थीं “वोट चोर-गद्दी छोड़” सभा की हकीकत को बयान कर रही थीं। भीड़ जुटाने का दम भरने वाली कांग्रेस की हकीकत यह रही कि पीछे की अधिकांश कुर्सियाँ खाली पड़ी रहीं।
मंच पर बैठे दिग्गज नेताओं को देखकर शुरुआती पल में लगा कि कार्यक्रम में ऊर्जा दिखेगी, पर जैसे-जैसे वक्त बीतता गया, तस्वीर साफ होती गई—कार्यक्रम का आयोजन भीड़ से ज्यादा चेहरों पर केंद्रित था।
कार्यक्रम का समय 12 बजे तय था, लेकिन जब हमारी टीम 1:30 बजे पहुंची तो हालात बिल्कुल अलग थे। न भीड़ जुटी, न खाली कुर्सियाँ भरने की कोई कोशिश। मंच पर मौजूद नेताओं का पूरा ध्यान केवल सचिन पायलट की एंट्री पर था। सवाल यह है कि क्या कांग्रेस अब सिर्फ “स्टार चेहरे पर निर्भर रह गई है और जनता को जोड़ने का माद्दा खो चुकी है?
पुराने नेताओं की सोच और अव्यवस्था
कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि पुराने नेता अब भी पार्टी की कमान छोड़ने को तैयार नहीं हैं। अव्यवस्था भी साफ झलकी पत्रकारों के लिए बनाई गई सीटों पर खुद कांग्रेसी काबिज थे। जब पार्टी खुद पत्रकारों का सम्मान नहीं कर पाती तो जनता से जुड़ाव की उम्मीद करना बेमानी है।
कांग्रेस नेताओं को यह समझना होगा कि युवा ही भविष्य हैं। यदि कांग्रेस उन्हें आगे नहीं बढ़ाएगी तो “वोट चोर” जैसे नारे और खाली कुर्सियाँ ही अगली तस्वीर होंगी।
कांग्रेस को आत्ममंथन करना होगा मुंगेली नाका की सभा ने यह साफ कर दिया कि कांग्रेस को सिर्फ नारों और चेहरों के भरोसे
जीत नहीं मिलेगी। पार्टी को युवाओं को नेतृत्व सौंपना होगा, संगठनात्मक अनुशासन लाना होगा और जनता से सीधा संवाद करना होगा।अन्यथा, खाली कुर्सियों की यह तस्वीर आने वाले दिनों में कांग्रेस के भविष्य की सच्चाई बन सकती है।















