25 साल का विकास का वादा… और सच्चाई के गड्ढों में धंसा बिलासपुर का ‘कॉमर्शियल हब’
ज्ञापन ढेर, सड़कें ढह गईं… नेता आए, वादे गए — मगर विकास आज भी ‘वेटिंग लिस्ट’ में!
ज्ञापन पर ज्ञापन, मुलाक़ात पर मुलाक़ात — फिर भी व्यापार विहार की किस्मत बंद फाइलों में कैद!
मंत्री बदले, अधिकारी बदले — लेकिन व्यापार विहार की बदहाली नहीं बदली!
केंद्रीय मंत्री से लेकर निगम आयुक्त तक को हिलाया — लेकिन व्यापार विहार के विकास की फाइलें अब भी जमी हैं!
वादों के पत्थर, हकीकत के गड्ढे
साल 2000 में व्यापार विहार को बिलासपुर का ‘मिनी मरीन ड्राइव’ बताया गया था — चौड़ी सड़कें, बेहतर ड्रेनेज, स्ट्रीट लाइटें और आधुनिक बाज़ार की परिकल्पना।
लेकिन यहां के व्यापारी अव्यवस्थाओं के बीच व्यापार कर रहे हैं जो कि काफी चिंता का विषय है। निगम और नगर नियोजन विभाग की फाइलों में व्यापार विहार ‘संपन्न क्षेत्र’ के रूप में दर्ज है, मगर जमीनी स्थिति देखकर लगता है जैसे यह कोई भूला हुआ औद्योगिक खंडहर हो।
प्रशासन ने विकास की फाइलें तो खोलीं, पर फावड़ा कभी नहीं उठाया।
टैक्स देने वाले परेशान, टैक्स लेने वाले ग़ायब
हर महीने लाखों रुपये का कर देने वाले व्यापारी हैं, लेकिन बदले में उन्हें मिल रहा है —
- टूटी सड़कें
- ओवरफ्लो नालियाँ
- बिजली की लाइटें बंद
- सफाई का नामोनिशान नहीं
यानी निगम वसूली में फर्स्ट क्लास है, लेकिन सुविधा देने में लास्ट क्लास। करदाता अगर विकास मांगता है, तो जवाब मिलता है— “प्रस्ताव विचाराधीन है।”
जनता नहीं, रिश्तेदारी का शासन!
एक मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, महापौर से मिलने गए व्यापारी जब यह सुनते हैं कि “मैडम नहीं, उनके पति बात करेंगे,” तो यह लोकतंत्र की कब्र पर रखे फूलों की तरह लगता है।
क्या बिलासपुर में जनप्रतिनिधि चुनकर लोग ‘प्रॉक्सी शासन’ चाहते थे?
यह प्रशासन नहीं, प्रभावशासन है — जहाँ फैसले जनता की नहीं, कुर्सी के इर्द-गिर्द घूमने वाले कुछ चेहरों की मर्ज़ी से होते हैं।
25 साल में विकास की एक भी स्थायी उपलब्धि नहीं
न निगम की वेबसाइट पर प्रगति रिपोर्ट अपडेट है, न कोई मास्टर प्लान। ना नई सड़क बनी, ना पार्किंग, ना सुरक्षा चौकी।
2000 से 2025 तक सिर्फ़ मीटिंग और मेंटेनेंस के नाम पर लूट की कहानी चलती रही।
व्यापारी हर चुनाव में नेताओं की भीड़ देखते हैं, लेकिन जीत के बाद वही नेता इन गलियों को भूल जाते हैं।
प्रशासन की चुप्पी अब खतरे की घंटी
एक मीडिया रिपोर्ट्स, व्यापार विहार संघ ने प्रशासन को एक माह का समय दिया है — यह डेडलाइन नहीं, डेंजर लाइन है।
72 घंटे का बंद आंदोलन सिर्फ़ व्यापार रुकने का मसला नहीं होगा, बल्कि यह पूरे शहर के राजस्व प्रवाह को रोक देगा।
अगर यह बंद हुआ, तो निगम के दफ्तरों में भी ‘सन्नाटा’ गूंजेगा।
सरकार को समझना चाहिए — जब व्यापारी सड़क पर उतरता है, तो शहर ठहर जाता है।
जिम्मेदार कौन? जवाब कौन देगा?
- नगर निगम इंजीनियरिंग शाखा — सड़क मरम्मत लिए का बजट कहाँ गया?
- स्वास्थ्य शाखा — नालियों की सफाई का ठेका किसे मिला और निगरानी कहाँ है?
- बिजली विभाग — कितने सालों से व्यापार विहार की स्ट्रीट लाइटें दुरुस्त नहीं हुईं?
- नगर नियोजन — क्या यह इलाका “प्राथमिक विकास क्षेत्र” की सूची में है या नहीं?
हर सवाल एक विभाग की नाकामी का पोस्टमॉर्टम है।
अब जनता नहीं, जमीनी जवाबदेही चाहिए
व्यापार विहार का मुद्दा सिर्फ़ व्यापारियों का नहीं है, यह शहर की आत्मा की चीख़ है। अगर सरकार और निगम ने अब भी ध्यान नहीं दिया, तो यह आंदोलन आने वाले निकाय चुनाव में वोट की सुनामी बन जाएगा।
व्यापारियों ने अब यह साबित कर दिया है — बिलासपुर बदल सकता है, लेकिन बर्दाश्त अब नहीं करेगा।
“अब भी अगर नहीं जागे, तो इतिहास कठघरे में खड़ा करेगा”
व्यापार विहार की कहानी केवल गड्ढों की नहीं, गंभीर प्रशासनिक पतन की कहानी है। यह शहर छत्तीसगढ़ की आर्थिक राजधानी कहा जाता है, लेकिन अपने ही व्यापारिक हृदय की धड़कनें रोककर कोई शहर जिंदा नहीं रह सकता।
न्यूज़ हब इनसाइट की इस ग्राउंड रिपोर्ट का उद्देश्य केवल आलोचना नहीं — जवाबदेही की मांग है।
हम सरकार से यही सवाल पूछते हैं —
“क्या विकास सिर्फ़ भाषणों और बोर्ड मीटिंग तक सीमित रहेगा, या बिलासपुर की धरती पर भी उतरेगा?”
अब निर्णय सरकार के पास है।
व्यापार विहार इंतज़ार नहीं, परिणाम चाहता है।















