
बिलासपुर जिले के सुदूर वनांचल ग्राम सोंठी, सीपत में स्थित बगलामुखी मां मन्नादाई मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। इस मंदिर में स्थित आदिकालीन स्वयंभू प्रतिमा भक्तों के लिए आस्था का प्रतीक बन चुकी है। मंदिर से जुड़ी एक किवदंती के अनुसार, लगभग 400 वर्ष पूर्व गांव के धामा धुर्वा नामक बैगा को सपना आया था, जिसमें माता ने बताया था कि वह पहाड़ों में स्थित हैं। इसके बाद, तत्कालीन जमींदार ने माता की प्रतिमा को गाड़ी से लाने का प्रयास किया, लेकिन 12 बैलगाड़ी टूटने के बावजूद भी प्रतिमा अपनी जगह से नहीं हिली। अंततः बैगा ने स्वप्न के आदेशानुसार मां की प्रतिमा को अपने कंधे पर उठाकर सोंठी में स्थापित किया।
पिछले कुछ वर्षों में बगलामुखी मंदिर में बलि प्रथा बंद कर दी गई है और अब यहां केवल धार्मिक अनुष्ठान ही होते हैं। मंदिर में हर साल चैत्र नवरात्रि के दौरान विशेष कार्यक्रम आयोजित होते हैं। इस वर्ष भी ग्रामवासी श्रद्धा भाव से मंदिर में जवारा बोने का आयोजन कर रहे हैं। यजमान संजय काशीराम डिक्सेना हैं और इस दौरान कुल 470 मनोकामना ज्योति कलश प्रज्वलित किए गए हैं, जिनमें 12 घृत एवं 458 तेल कलश शामिल हैं। यह मंदिर संतान प्राप्ति के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है, और यहां आने वाले श्रद्धालु मां से संतान की प्राप्ति की मन्नत मानते हैं। इस वर्ष विशेष बात यह है कि मंदिर में हिंदुओं के साथ-साथ बिलासपुर के मुस्लिम परिवारों ने भी ज्योति कलश प्रज्वलित किए हैं।
मंदिर में महाष्टमी के दिन 5 अप्रैल 2025 को हवन और 6 अप्रैल 2025 को रामनवमी महोत्सव का आयोजन होगा, जिसमें सुंदरकांड पाठ, कन्या भोजन और भंडारे का कार्यक्रम होगा। कन्या भोज में गांव की तीन से दस वर्ष तक की बच्चियों का पूजन करके उन्हें सामूहिक कन्या भोज कराया जाएगा। इसके बाद, 7 अप्रैल 2025 को जवारा विसर्जन का कार्यक्रम होगा, जिसमें गांव के सभी लोग जस गीत गाते हुए जवारा विसर्जन करेंगे।
मंदिर की संचालन समिति का गठन किया गया है, जिसकी अध्यक्षता रामेश्वर जायसवाल कर रहे हैं। समिति के अन्य सदस्य हैं भीमप्रताप ठाकुर (उपाध्यक्ष), भूपेंद्र तिवारी (कोषाध्यक्ष), राज किशोर ठाकुर (सचिव) और पंडित प्रमोद तिवारी, बैगा कार्तिक राम, हीरालाल पटेल, महेंद्र चंद्रिका पुरे, संतोष, धनीराम, धनसाय सहित अन्य ग्रामवासी। ये सभी निरंतर श्रमदान और सेवा के जरिए मंदिर की व्यवस्था को सुचारू रूप से चला रहे हैं।
मंदिर में होने वाले इन धार्मिक आयोजनों से गांव के सभी निवासियों को न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि यह आयोजन सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक बनते हैं।