बिलासपुर। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने आज न्यायपालिका को आधुनिक और पारदर्शी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए “डिजिटाईजेशन सेंटर” का शुभारंभ किया। यह पहल न्यायिक प्रक्रियाओं को पेपरलेस बनाने और तकनीकी संसाधनों का उपयोग न्यायिक कार्यों को अधिक प्रभावी व पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से की गई है।
डिजिटाईजेशन सेंटर का उद्घाटन छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा ने फीता काटकर किया। इस मौके पर उन्होंने कहा, “आज का दौर तकनीकी और वर्चुअल सुनवाई का है। कोविड-19 के दौरान हमने वर्चुअल माध्यम से सफलतापूर्वक मामलों की सुनवाई की। पेपरलेस कोर्ट की अवधारणा को साकार करने के लिए यह डिजिटाईजेशन सेंटर एक अहम कदम है।”
डिजिटाईजेशन के फायदे और चुनौतियां
मुख्य न्यायाधिपति ने डिजिटाईजेशन प्रक्रिया को न्यायिक सुधारों में मील का पत्थर बताया और कहा कि दस्तावेजों को डिजिटल रूप में बदलने का कार्य बेहद संवेदनशील है। “डिजिटाईजेशन करते समय हमें सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी दस्तावेज छूट न जाए और दस्तावेजों की सटीकता बनी रहे। गलत फाइलें संलग्न होने से गंभीर परिणाम हो सकते हैं,” उन्होंने कहा।
उन्होंने यह भी कहा कि तकनीकी संसाधनों का सही उपयोग न्यायपालिका को अधिक प्रभावी, पारदर्शी और शीघ्र परिणाम देने वाला बना सकता है।
विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति
डिजिटाईजेशन सेंटर के शुभारंभ के अवसर पर कई माननीय न्यायमूर्ति उपस्थित रहे, जिनमें न्यायमूर्ति रजनी दुबे, नरेंद्र कुमार व्यास, दीपक कुमार तिवारी, सचिन सिंह राजपूत, रविन्द्र अग्रवाल, अरविंद कुमार वर्मा, बी.डी. गुरु और ए.के. प्रसाद शामिल हैं। कार्यक्रम में रजिस्ट्रार जनरल श्री के. विनोद कुजूर और अन्य वरिष्ठ अधिकारीगण भी मौजूद रहे।
न्यायपालिका के लिए तकनीकी सुधार का महत्व
इस पहल के तहत लंबित मामलों के दस्तावेज डिजिटाईज किए जाएंगे, जिससे न्यायिक प्रक्रिया में तेजी आएगी और पेपरलेस कोर्ट की अवधारणा को मूर्त रूप दिया जा सकेगा। मुख्य न्यायाधिपति ने इस अवसर पर यह भी कहा कि डिजिटाईजेशन की प्रक्रिया को समयबद्ध और सावधानीपूर्वक पूरा करना आवश्यक है ताकि न्यायिक प्रणाली को आधुनिक तकनीकी के साथ जोड़ा जा सके।
इस कदम से छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने न्यायिक क्षेत्र में तकनीकी उन्नति की ओर एक बड़ा और ऐतिहासिक कदम बढ़ाया है।
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