क्या छत्तीसगढ़ के राज्यपाल और मुख्यमंत्री सूचना के अधिकार कानून को खत्म करना चाहते हैं? राज्य सूचना आयोग में नियुक्तियां ना करने के पीछे कोई साजिश! छत्तीसगढ़ सरकार जनता जनार्दन से क्या छुपा रही है? पढ़िए वृस्तित रिपोर्ट

बिलासपुर…देश में जब बात सरकारों की जनता के प्रति जवाबदेही की आती है तो बहुत कम ही राज्यों से खबर आती है कि सरकारें संवेदनशील हैं। वैसे तो देश के तमाम नेतागण और बाद में अधिकारियों की जिम्मेदारियों का समय – समय पर ऑडिट जनता द्वारा किया जाता है, लेकिन ज्यादातर मामलों में सरकारें असंवेदनशील नजर आती है। सरकारें नहीं चाहती कि शासन में हो रहे तमाम कार्यों की सूचना आखरी पायदान तक पहुंचे,  ऐसा ही मामला छत्तीसगढ़ सरकार का भी है।

आज हम आपसे बात करेंगे सूचना के अधिकार कानून के क्रियान्वयन की। वैसे तो सूचना का अधिकार कानून का मुख्य उद्देश्य भारत के नागरिकों को सशक्त बनाना और सरकार के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना है, लेकिन छत्तीसगढ़ की सरकार उल्टे जनता और जनहित से जुड़े सूचनाओं को लगातार छुपाती चली आ रही है, पारदर्शिता कहीं नजर नहीं आती। इसका जीता जागता उदाहरण है सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त और आयुक्तों की नियुक्ति जानबूझकर नहीं करना।

आपको बता दें की छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद कुछ ही सालों तक सूचना आयोग का कार्य सुचारू रूप से चला, उसके बाद सूचना आयोग का जैसे मजाक ही बन गया। राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का पद लगभग दो सालों से पेंडिंग है। अभी सिर्फ दो आयुक्त ही कार्यरत हैं। पाठकों को बता दें की मुख्य सूचना आयुक्त कार्यालय द्वितीय अपील सुनवाई का महत्वपूर्ण फोरम है, द्वितीय अपील सुनवाई के खिलाफ आवेदक को हाईकोर्ट जाना होता है,जो बहुत ही लम्बी प्रक्रिया है और खर्चीली भी। सरकार द्वारा सूचना आयोग में जानबूझकर नियुक्तियां ना करना अपने आप में बहुत गंभीर मामला है, और छत्तीसगढ़ सरकार के ऊपर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह भी है।

हमने आपको बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त और आयुक्तों की नियुक्ति काफी समय से नहीं की गई है, मुख्य सूचना आयुक्त एम के राउत को रिटायर हुए लगभग दो साल हो गए हैं, वर्तमान में आयोग में सिर्फ दो ही आयुक्त हैं, नरेन्द्र कुमार शुक्ला ( पूर्व कलेक्टर, संघ पृष्ठभूमि ), आलोक चंद्रवंशी (रिटायर्ड उपायुक्त नगर निगम) पदस्थ हैं। आपको बता दें कि पूर्व में मनोज त्रिवेदी और धनवेंद्र जायसवाल सूचना आयुक्त के पद में पदस्थ थे। दोनों पत्रकारिता के क्षेत्र से आते हैं। इनकी नियुक्ति विवादों के घेरे में थी। इस मामले में बिलासपुर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर हुई थी। हाईकोर्ट ने राज्य शासन को नोटिस भी भेजा था। इन दोनों आयुक्तों की नियुक्तियों को नियम विरुद्ध बताया गया था।

मुख्य सूचना आयुक्त और आयुक्तों के लिए राज्य शासन ने तीन बार आवेदन भी मंगवाए, लेकिन अभी तक इनकी नियुक्तियों का अता पता नहीं है,राज्य शासन में काबिल अफ़सर होने के बावजूद आयोग में नियुक्तियां नहीं होना एक बड़ी साजिश की ओर इशारा करता है। छत्तीसगढ़ शासन की व्यवस्था देखिए, सूचना आयोग जैसे अति महत्वपूर्ण विभाग में रिटायर्ड अधिकारियों को लगातार उपकृत किया जा रहा है, और काबिल अफसरों को किनारे कर दिया गया है। रिटायरमेंट के बाद एक्सटेंशन पर एक्सटेंशन का फैशन खूब चलन में है। मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि आयुक्तों की नियुक्ति में नेता प्रतिपक्ष को भी किनारे किया गया, मतलब नियक्तियों के सारे मापदंड की धज्जियां उड़ाई गई।

राज्य सूचना आयोग में नियुक्तियां नहीं करने के प्रभाव

लंबित मामले तेजी से बढ़ रहे हैं

आयुक्तों के ऊपर काम का अत्यधिक दबाव

मामलों का जवाब देने में देरी

नागरिकों के अधिकारों का हनन

पारदर्शिता की व्यवस्था पूरी तरह से अवरुद्ध

राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया

राज्य सूचना आयोग में नियुक्तियों का गठन, राज्य सरकार द्वारा राजपत्र (gazette notification) अधिसूचना के द्वारा किया जाता है। इसमें एक राज्य मुख्य सूचना आयुक्त (SCIC) और राज्यपाल द्वारा समय समय पर नियुक्त किए जाने वाले 10 राज्य सूचना आयुक्त (SIC) होते हैं। राज्यपाल एक चयन समिति की सिफारिश पर राज्य सूचना आयोग के प्रमुख (मुख्य सूचना आयुक्त) और अन्य सदस्यों (सूचना आयुक्त) की नियुक्ति करते हैं। आपको बता दें कि चयन समिति में मुख्यमंत्री अध्यक्ष होते हैं, मुख्यमंत्री के अलावा विधानसभा में विपक्ष के नेता और राज्य का एक कैबिनेट मंत्री भी इस समिति में शामिल होता है।

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से मुख्य सूचना आयुक्तों के नाम 

ए के विजयवर्गीय 7.11.2015 सेवा पूर्ण

सरजियस मिंज 15.03.2016 सेवा पूर्ण

एम के राउत 11.11.2022 सेवा पूर्ण

छत्तीसगढ़ शासन की गैर जिम्मेदारी से ये समझ में आता है कि अगर राज्य में सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त का पद लंबे समय से खाली है तो द्वितीय अपील की सुनवाई का क्या औचित्य रह जाता है, मतलब आयोग एक प्रकार से शून्य ही है, बगैर नियुक्तियों के सुनवाई समझ से परे है, पूरी प्रक्रिया की जांच होनी चाहिए, चौकाने वाले खुलासे सामने आयेंगे। देखते है इस पर सरकार कितनी गंभीर होती है।

अनिल जोशी को 22.09.2008 को प्रथम राज्य सूचना आयुक्त के पद में नियुक्ति दी गईं थी, राज्यपाल रमेन डेका और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को सूचना आयोग में जल्दी ही खाली पदों में नियुक्तियां करनी चाहिए, जिससे कि राज्य के नागरिकों को निश्चित समय सीमा में सूचना उपलब्ध हो सके और सूचना के अधिकार कानून की सार्थकता साबित हो सके। बहरहाल , इस पूरी प्रक्रिया में हम लगातार नजर बनाए हुए हैं, हमारे पाठकों को समय समय पर लेटेस्ट अपडेट दिया करेंगे । आप बने रहिए news hub insight के साथ

बहुत बहुत शुक्रिया

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