बिलासपुर : विभाग से निर्माण कार्यों के लिए जारी किया गया 82.99 लाख रुपये का टेंडर विभाग में हड़कंप मचाने लगा है। 16 अलग-अलग कामों के लिए निकले इस टेंडर में 15 ठेकेदारों ने कुल 106 फॉर्म खरीदे। सब कुछ सामान्य लग रहा था, लेकिन विवाद तब गहराया जब सहायक आयुक्त पीसी लहरे ने टेंडर शर्तों में संशोधन कर दिया।
संशोधित शर्तों के बाद 15 में से सिर्फ 3 ठेकेदार पात्र घोषित किए गए, जबकि बाकी 12 ठेकेदार अपात्र हो गए। अपात्र ठेकेदारों ने इसे सीधा अन्याय मानते हुए कलेक्टर से शिकायत की है। शिकायत में कहा गया है कि नियमों का हवाला देकर टेंडर प्रक्रिया को मनमाने तरीके से बदला गया है, जिससे केवल कुछ चुनिंदा ठेकेदारों को लाभ मिला।
एक ठेकेदार ने आरोप लगाया— इससे साफ समझ आता है कि सहायक आयुक्त ने नियम की आड़ में अपने चहेते ठेकेदारों को फायदा पहुँचाया है। चाहे वो कितनी भी बार नियम का हवाला क्यों न दें।
अधिकारियों का पक्ष
जब सहायक आयुक्त लहरे से इस विवाद पर सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि टेंडर प्रक्रिया का अनुभव नहीं रखने वाले बाबू संजय शुक्ला से कुछ तकनीकी त्रुटियाँ हो गई थीं। इसी कारण टेंडर में संशोधन करना पड़ा। लहरे ने दावा किया कि संशोधन नियमों के अनुसार ही किए गए हैं और इसमें किसी भी तरह की गड़बड़ी नहीं है।
हालांकि, ठेकेदार इस जवाब से संतुष्ट नहीं दिख रहे। उनका कहना है कि यदि लहरे जैसे अनुभवी अधिकारी पहले से टेंडर की शर्तें तय कर चुके थे, तो बाद में संशोधन की कोई जरूरत नहीं थी। ठेकेदारों ने सवाल उठाया है कि क्या यह तर्क देकर सहायक आयुक्त खुद को बचाने की कोशिश कर रहे हैं?
कलेक्टर तक पहुँची शिकायत
टेंडर प्रक्रिया में अपात्र ठहराए गए ठेकेदार अब कलेक्टर से न्याय की उम्मीद लगाए बैठे हैं। उन्होंने अपनी लिखित शिकायत में विभागीय अधिकारियों पर पक्षपात के गंभीर आरोप लगाए हैं। अब देखना यह होगा कि कलेक्टर इस मामले की जांच का आदेश देते हैं या नहीं।
विभाग में चर्चा
विभागीय सूत्र बताते हैं कि 82.99 लाख रुपये का यह टेंडर आदिवासी क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए जारी किया गया था। लेकिन पात्रता को लेकर अचानक हुए बदलाव ने पूरे मामले को संदिग्ध बना दिया है। फिलहाल विभाग में इस मुद्दे को लेकर जोरदार चर्चा हो रही है और सभी की निगाहें प्रशासनिक कार्रवाई पर टिकी हैं।















