बिलासपुर में रेत खदान की ई-नीलामी : पारदर्शिता की जीत, लेकिन छोटे बोलीदाताओं की चुनौती

बिलासपुर : रेत खदानों का आवंटन अब पूरी तरह से एमएसटीसी पोर्टल के जरिए होगा। कागज़ी प्रक्रिया और ऑफलाइन निविदाओं में पारदर्शिता को लेकर जो सवाल उठते रहे, उन्हें देखते हुए सरकार ने यह कदम उठाया है। निश्चय ही, ई-नीलामी (रिवर्स ऑक्शन) एक आधुनिक, प्रतिस्पर्धी और पारदर्शी व्यवस्था है। इससे सरकार को उचित राजस्व मिलेगा और बिचौलियों के लिए जगह कम होगी।

लेकिन, यह व्यवस्था उतनी ही सफल होगी जितना इसमें छोटे और स्थानीय खिलाड़ियों की भागीदारी सुनिश्चित होगी। यही वह वर्ग है जो अब भी तकनीकी जानकारी और संसाधनों की कमी के कारण पीछे रह जाता है।

ग्रामीण या छोटे कस्बाई बोलीदाता अक्सर कंप्यूटर और इंटरनेट की सीमित समझ रखते हैं। उनके पास हाई-स्पीड कनेक्टिविटी, प्रशिक्षित स्टाफ या साइबर कैफे तक आसान पहुँच नहीं होती। ऐसे में जब बड़े कॉर्पोरेट खिलाड़ी या तकनीकी रूप से सक्षम बोलीदाता मैदान में उतरते हैं, तो स्थानीय स्तर का इच्छुक बोलीदाता खुद को हाशिए पर पाता है।

यदि सरकार का उद्देश्य केवल राजस्व बढ़ाना नहीं बल्कि स्थानीय सहभागिता भी सुनिश्चित करना है, तो इसके लिए तीन कदम बेहद जरूरी हैं—

  1. जिला व ब्लॉक स्तर पर व्यापक ट्रेनिंग कार्यक्रम, जिसमें बोली की हर प्रक्रिया को सरल भाषा और प्रैक्टिकल डेमो के साथ समझाया जाए।

  2. कॉमन सर्विस सेंटर और हेल्प डेस्क को MSTC पोर्टल से जोड़ा जाए, ताकि गाँव-कस्बे के इच्छुक बोलीदाता भी आसानी से भाग ले सकें।

  3. पोर्टल की यूज़र गाइड और वीडियो स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध कराई जाए।

ई-नीलामी की राह निस्संदेह पारदर्शिता और ईमानदारी की दिशा में बड़ा कदम है, लेकिन इसकी सफलता का पैमाना केवल बड़ी कंपनियों की भागीदारी नहीं होगी। असली सफलता तब मानी जाएगी, जब गाँव-कस्बों का छोटा बोलीदाता भी बराबरी से बोली में हिस्सा लेकर जीत सके।

 यही समय है कि सरकार तकनीक और प्रशिक्षण को जनसुलभ बनाए, ताकि पारदर्शिता के साथ-साथ समावेशिता भी सुनिश्चित हो सके।

 विभाग के सामने कठोर सवाल

  1. क्या छोटे बोलीदाताओं के लिए लगातार ट्रेनिंग और तकनीकी सहायता उपलब्ध होगी?

  2. क्या विभाग स्थानीय भाषा (हिंदी/छत्तीसगढ़ी) में गाइडलाइन देगा?

  3. सिस्टम फेल या नेटवर्क कटने पर बोलीदाता को सुरक्षा कवच मिलेगा या उनकी बोली रिजेक्ट मानी जाएगी?

  4. क्या 24×7 हेल्प डेस्क व शिकायत निवारण तंत्र वाकई सक्रिय होगा?

  5. ई-नीलामी में भ्रष्टाचार रोकने की गारंटी कैसे दी जाएगी?

  6. निगरानी कौन करेगा कि किसी खास बोलीदाता को फायदा न मिले?

  7. सरकार को तो राजस्व बढ़ेगा, लेकिन क्या न्याय भी बढ़ेगा?

ई-नीलामी से पारदर्शिता की उम्मीद तो है, लेकिन साथ ही आशंका भी उतनी ही गहरी है। अगर छोटे खिलाड़ी बाहर हो गए तो यह “डिजिटल पारदर्शिता” नहीं बल्कि “डिजिटल भेदभाव” कहलाएगा।

राजस्व के साथ न्याय भी उतना ही जरूरी है। खनिज विभाग को चाहिए कि—

  • प्रशिक्षण को केवल औपचारिकता न रखे,

  • स्थानीय भाषा में सरल गाइडलाइन दे,

  • और तकनीकी बाधाओं का ठोस समाधान पेश करे।

ई-नीलामी का स्वागत तभी है जब यह सबके लिए बराबरी का अवसर लेकर आए। वरना यह प्रक्रिया बड़े घरानों की जीत और छोटे खिलाड़ियों की हार का नया अध्याय बन जाएगी।

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