बिलासपुर। शिक्षा वह दीपक है जो समाज को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है — पर जब वही दीपक धुएँ में डूब जाए तो सवाल उठना लाज़मी है। रहटाटोर प्राथमिक शाला, मस्तूरी का हालिया मामला यही आईना दिखाता है, जहाँ एक सहायक शिक्षक मनोज कुमार नेताम का मदिरापान और मांसाहार करते हुए स्कूल परिसर में वायरल वीडियो न केवल शर्मनाक है, बल्कि पूरे शिक्षकीय समुदाय की गरिमा पर प्रश्नचिह्न है।
जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय ने जिस तत्परता से कार्रवाई की है — तत्काल प्रभाव से निलंबन — वह प्रशासन की सख्त नीयत को दिखाता है, पर सवाल यह भी है कि आखिर ऐसी घटनाएं बार-बार क्यों दोहराई जा रही हैं? क्या हमारे विद्यालयों में अनुशासन और नैतिक मूल्यों की निगरानी का तंत्र कमजोर पड़ गया है?
विद्यालय केवल किताबों का स्थान नहीं, बल्कि संस्कारों की प्रयोगशाला है। वहां बच्चों के सामने ऐसा आचरण करना, गुरु की छवि का ही अपमान है। छत्तीसगढ़ सिविल सेवा आचरण नियम 1965 के नियम 3 का उल्लंघन कर शिक्षक ने न केवल अपने पद की मर्यादा तोड़ी, बल्कि समाज में शिक्षा के प्रति विश्वास को भी आघात पहुँचाया।
अब ज़रूरत केवल निलंबन की नहीं, बल्कि व्यवस्थित सुधार की है। हर ब्लॉक, हर स्कूल में नैतिक आचरण समीक्षा समिति बने, ताकि शिक्षा का मंदिर फिर से पवित्रता का प्रतीक बन सके।
यह केवल एक शिक्षक का अपराध नहीं, बल्कि पूरे तंत्र के आत्ममंथन का समय है।















