
बिलासपुर: हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति रविंद्र कुमार अग्रवाल ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में 8.85 एकड़ कृषि भूमि को मादक द्रव्य देकर फर्जी तरीके से अपने नाम पंजीकृत कराने के आरोपी वकील और उसके सहयोगी गवाह की अपील को खारिज कर दिया है। न्यायालय ने सत्र न्यायालय बिलासपुर द्वारा फरवरी 2016 में दिए गए तीन वर्ष की सजा और अर्थदंड के आदेश को बरकरार रखा है।
यह मामला बिलासपुर के सीपत थाना क्षेत्र के ग्राम खैरा निवासी किसान मेहर चंद पटेल से जुड़ा है, जिसने 2013 में सिविल लाइन थाने में एक लिखित शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत में कहा गया कि बिलासपुर न्यायालय में वकालत करने वाला एक वकील, जो उनका राजस्व संबंधी वकील भी था, ने उन्हें जमानत के बहाने बिलासपुर बुलाया और मादक पदार्थ देकर फर्जी बिक्री विलेख पर हस्ताक्षर करवा लिया। इसके बाद वकील ने 2011 में ही उनकी पूरी 8.85 एकड़ भूमि अपने नाम पंजीकृत करवा ली।
जांच में सामने आया कि वकील ने शिकायतकर्ता के फर्जी हस्ताक्षर कर जमीन का रजिस्ट्रीकरण अपने नाम करा लिया था। पुलिस ने जांच के बाद वकील, उसके गवाह सीताराम कैवर्त, तत्कालीन पटवारी अशोक ध्रुव और दस्तावेज लेखक देवनाथ यादव के खिलाफ धोखाधड़ी का प्रकरण दर्ज कर चालान पेश किया था।
सत्र न्यायालय ने सभी आरोपियों को विभिन्न धाराओं में दोषी मानते हुए तीन वर्ष की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ सभी आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील की थी।
हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि अपीलकर्ता वकील ने अपनी प्रभावशाली स्थिति का फायदा उठाकर शिकायतकर्ता को ठगा। उसने झूठी बातों से बहला-फुसला कर उसके हस्ताक्षर कराए और जाली बिक्री विलेख के माध्यम से भूमि हड़प ली। कोर्ट ने यह भी कहा कि गवाह सीताराम कैवर्त की संलिप्तता भी साक्ष्यों से सिद्ध होती है।
पटवारी व दस्तावेज लेखक दोषमुक्त
कोर्ट ने पटवारी अशोक ध्रुव और दस्तावेज लेखक देवनाथ यादव की अपील पर कहा कि उनके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं। पटवारी ने केवल 22 बिंदु जारी किए, पर यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि वह दस्तावेज किसके पास पहुंचा। दस्तावेज लेखक ने भी स्वीकार किया कि शिकायतकर्ता ने उसके सामने हस्ताक्षर नहीं किए थे। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने दोनों को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त कर दिया।