
साधे लाल पटेल मामले में अनिल तिवारी जवाब दें
क्यों अब तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई?
क्या आरोपी शिक्षक साधे लाल पटेल को किसी ‘ऊपरी संरक्षण’ का लाभ मिल रहा है?
बिलासपुर के बिल्हा ब्लॉक में शिक्षक साधे लाल पटेल द्वारा किए गए फर्जी मेडिकल बिल घोटाले ने सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली और जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। 30 लाख रुपये की चिकित्सा सहायता राशि निकालने की इस कोशिश में मृत व्यक्ति के नाम पर भी बिल बनाना और जिला अस्पताल की सील व हस्ताक्षर की कूटरचना करना न केवल नैतिक पतन का उदाहरण है, बल्कि यह दर्शाता है कि यदि समय रहते सच उजागर न होता तो सरकारी धन की यह बड़ी राशि किसी के निजी हित में हड़प ली जाती।
सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि स्वास्थ्य विभाग ने बिलों को स्पष्ट रूप से फर्जी और कूटरचित मानते हुए एफआईआर की अनुशंसा की, लेकिन शिक्षा विभाग अब तक चुप्पी साधे बैठा है। जांच रिपोर्ट तक समय पर प्रस्तुत नहीं की गई, जिससे संदेह और भी गहराता है। यह रवैया भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहिष्णुता की बात करने वाले सरकारी तंत्र की दोहरी मानसिकता को उजागर करता है।
इस पूरे प्रकरण में यह भी स्पष्ट है कि शिक्षक ने अपने निजी हितों के लिए विभागीय प्रक्रियाओं का न केवल दुरुपयोग किया, बल्कि बीमार होने का झूठा दावा करके ड्यूटी के समय भी फर्जी इलाज दिखाया। यह न सिर्फ सेवा शर्तों का उल्लंघन है, बल्कि नैतिक अपराध भी है।
अब सवाल यह है कि जब स्वास्थ्य विभाग ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कर दिया है कि न कोई बिल जारी हुआ, न कोई हस्ताक्षर किए गए, तब भी शिक्षा विभाग क्यों चुप है? क्यों अब तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई? क्या आरोपी शिक्षक को किसी ‘ऊपरी संरक्षण’ का लाभ मिल रहा है?
यह मामला केवल एक शिक्षक का नहीं है, यह हमारी व्यवस्था की कमजोरी का प्रतीक है। यदि समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो ऐसे घोटाले एक प्रवृत्ति बन जाएंगे। आवश्यक है कि शिक्षा विभाग तत्काल प्रभाव से जांच रिपोर्ट सार्वजनिक करे, दोषी पर आपराधिक मुकदमा दर्ज करे और इस प्रकरण को एक उदाहरण बनाकर पेश करे।
सरकारी धन जनकल्याण के लिए है, व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं। जवाबदेही तय करना और पारदर्शिता सुनिश्चित करना प्रशासन की प्राथमिक जिम्मेदारी है। यदि हम आज चुप रहे, तो कल और बड़े घोटालों के लिए खुद को तैयार रखना होगा।