87 लाख का घोटाला या भ्रम? उपमुख्यमंत्री साव पर सवाल
जनता का पैसा निजी कार्यक्रम में? PWD बोला– झूठ!
श्रद्धांजलि सभा पर 87 लाख खर्च? विभाग का खंडन
छत्तीसगढ़ की राजनीति इस समय एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जहाँ सत्ता की सच्चाई और जनता के सवालों के बीच एक अदृश्य संघर्ष चल रहा है। एक ओर विपक्ष यह आरोप लगा रहा है कि प्रदेश को चारागाह समझकर यहाँ की जल-जंगल-जमीन और खनिज संपदा को लूटा जा रहा है—हसदेव से लेकर तमनार तक जंगलों की कटाई, खदानों का विस्तार और सामाजिक संतुलन को ध्वस्त किया जा रहा है। अपराध बेलगाम है, बच्चियों के साथ दुष्कर्म जैसी वीभत्स घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं, और जनता महंगाई व बिजली बिलों से त्रस्त है।
आपको बता दें इन सब बातों को लेकर जिला कांग्रेस कमेटी के शहर अध्यक्ष विजय पांडे ने कल 8 नवंबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस की.
लेकिन इस पूरे शोर में एक सवाल सबसे अधिक सुर्खियों में है—
क्या उपमुख्यमंत्री-सह-पीडब्ल्यूडी मंत्री अरुण साव के भांजे के निजी कार्यक्रम में जनता के करोड़ों रुपए खर्च किए गए?
विजय पांडे का दावा है कि 4 अगस्त 2024 को घटी दुखद घटना के बाद 9 अगस्त 2024 को आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में 87 लाख 34 हजार 424 रुपए खर्च किए गए। बिलों में भारी गड़बड़ी, अलग-अलग राशि, जोड़-घटाव में अनियमितता, और यह तथ्य कि कार्यक्रम निजी था—ये सब गंभीर सवाल खड़े करते हैं।
पांडे ने कहा कि यदि यह सच है, तो यह स्पष्ट रूप से पद का दुरुपयोग और भ्रष्टाचार है—जहाँ जनता के धन को निजी शोकसभा में खर्च कर दिया गया। यह व्यवस्था का चूषण नहीं तो और क्या है?
सरकारी पक्ष का सफाईनामा—सच या सफाई?
दूसरी ओर लोक निर्माण विभाग (PWD) का कहना है कि—
– किसी भी निजी कार्यक्रम में विभाग ने पैसा खर्च नहीं किया
– सोशल मीडिया में प्रसारित बिल भ्रामक और विभाग से असंबंधित हैं
-आरटीआई में दिए गए रिकॉर्ड में ऐसे बिलों का कोई उल्लेख नहीं
-भुगतान केवल सरकारी आयोजनों—मुख्यमंत्री और मंत्रियों के कार्यक्रम—पर किया गया
– विभाग इन भ्रामक सूचनाओं को फैलाने वालों पर कार्रवाई की बात भी कह रहा है
PWD ने बाकायदा 12 सरकारी कार्यक्रमों का विस्तृत विवरण भी जारी किया है—कब-कहाँ-कितना खर्च हुआ।
तो अब जनता किस पर भरोसा करे?
दोनों पक्षों के दावों के बीच सच कहीं गहरे दबा है।
कांग्रेस आरोप लगा रही है—
“मंत्री ने पद का दुरुपयोग कर जनता के पैसे को निजी कार्यक्रम में उड़ाया।”
वहीं, विभाग कह रहा है—
“एक पैसा भी निजी कार्यक्रम पर खर्च नहीं हुआ, सब अफवाह है।”
अब असल सवाल है—
➡ अगर RTI में यह जानकारी दी गई कि 87 लाख का भुगतान हुआ—तो वो किस कार्यक्रम के नाम पर?
➡ कौन-सा बिल असली है? कौन-सा फर्जी?
➡ यदि बिल फर्जी हैं—तो विभाग FIR क्यों नहीं कर रहा?
➡ यदि असली हैं—तो पद छोड़ने की नैतिक ज़िम्मेदारी किसकी है?
न्यायिक जांच ही एकमात्र रास्ता
राजनीतिक विषेषज्ञों के अनुसार, सच्चाई तक पहुँचने के लिए केवल एक रास्ता है— हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज की निष्पक्ष जांच
क्योंकि—
जब आरोप सत्ता के शीर्ष पदों पर बैठे लोगों पर हो, तो विभागीय सफाई पर्याप्त नहीं।
छत्तीसगढ़ की राजनीति में यह विवाद केवल एक खर्च का मामला नहीं—यह व्यवस्था पर विश्वास, पारदर्शिता और जनधन की सुरक्षा का मुद्दा है।
यदि विपक्ष के आरोप सही हैं—
तो यह जनता के पैसे की डकैती है।
अगर सरकारी पक्ष सही है—
तो यह राजनीतिक भ्रामक प्रचार और चरित्रहनन का घिनौना खेल।
सवाल वही—
➡ कौन सच बोल रहा है?
➡ किसके पास असली दस्तावेज़ है?
➡ और कब सामने आएगा सच?
छत्तीसगढ़ की जनता जवाब चाहती है, और जवाब मिलना ही चाहिए;
क्योंकि जनता सिर्फ वोट नहीं देती,
सरकार चलाने का अधिकार देती है—उसके पैसों से।
यह मामला सिर्फ सवाल नहीं—लोकतंत्र की परीक्षा है।















