
बिलासपुर ज़िले के सकरी तहसील अंतर्गत ग्राम घूरू में नामांतरण को लेकर एक बड़ा प्रशासनिक घोटाला सामने आया है। जानकारी के अनुसार घूरू के पटवारी मनमोहन सिदार ने एसडीएम के स्थगन आदेश को छिपाकर प्रतिबंधित खसरों का नामांतरण करवा दिया। हैरानी की बात ये है कि इस खेल में नए तहसीलदार की भूमिका भी संदिग्ध बताई जा रही है।
आदेश के बावजूद हुआ नामांतरण
दरअसल, साल 2021 में तखतपुर के तत्कालीन एसडीएम ने घूरू क्षेत्र के खसरा नंबर 91/3, 92/3, 94/2, और 95/2 पर अवैध प्लाटिंग को लेकर स्थगन आदेश जारी किया था। यह आदेश 2025 तक प्रभावशील था और इन खसरों की बिक्री तथा नामांतरण पर स्पष्ट रूप से रोक लगाई गई थी। बावजूद इसके, 11 अप्रैल 2025 को नए तहसीलदार के कार्यभार संभालते ही इन चारों खसरों का नामांतरण कर दिया गया।
पुराने तहसीलदार ने रोका, नए ने कर दिया पास
पूर्व में पदस्थ सकरी तहसीलदार ने हर बार स्थगन आदेश का हवाला देकर नामांतरण से इनकार किया था। लेकिन नए तहसीलदार ने न तो आदेश की जांच की, न ही पटवारी से प्रतिवेदन मांगा और सीधे प्रतिबंधित जमीन के नामांतरण पर मुहर लगा दी। सूत्रों की मानें तो पटवारी ने जानबूझकर स्थगन आदेश की जानकारी तहसीलदार से छिपाई और दस्तावेज अधूरे प्रस्तुत किए।
पटवारी और भू-माफियाओं की मिलीभगत?
स्थानीय कर्मचारियों और सूत्रों का कहना है कि घूरू पटवारी मनमोहन सिदार की भू-माफियाओं से मिलीभगत की पूरी आशंका है। आरोप है कि उसने मोटे सौदे के तहत जानकारी छिपाई और एसडीएम के आदेश को नजरअंदाज कर, नामांतरण की प्रक्रिया को अंजाम दिया।
नामांतरण में नए तहसीलदार की भूमिका पर भी सवाल
कई विभागीय कर्मचारियों का कहना है कि नामांतरण के समय तहसीलदार को संपूर्ण जानकारी देना पटवारी की जिम्मेदारी होती है, लेकिन यह जानबूझकर नहीं किया गया। इसके बावजूद तहसीलदार द्वारा बिना जांच पड़ताल के नामांतरण करना, उनकी भूमिका पर भी सवाल खड़े करता है।
क्या कहता है प्रशासन?
अब सबकी निगाहें जिला प्रशासन पर टिकी हैं कि क्या पटवारी और तहसीलदार के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई होगी या यह मामला भी जांच की फाइलों में दबकर रह जाएगा।
📌 सवाल यह भी है कि क्या भू-माफियाओं के साथ मिलकर सरकारी तंत्र का इस तरह दुरुपयोग करने वालों को बख्शा जाएगा?