
विकास मिश्रा की रिपोर्ट
बिलासपुर: आज वन विभाग रतनपुर ने बहुचर्चित कछुआ प्रकरण में संलिप्त दो मछुवारों को गिरफ्तार कर प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया। दोनों मछुआरे जेल भेजे गए।
सुबह 11 बजे बुधवारी पारा निवासी अरुण धीवर एवं भेड़ीमुड़ा निवासी विष्णु धीवर को वन विभाग रतनपुर द्वारा जांच हेतु बुला कर दोपहर 1:30 बजे वन अपराध – वन्य प्राणी कछुए के शिकार के आरोप में वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 9, 39(1), 39(2), 39(3) एवं धारा 49 के तहत पीओआर क्रमांक 17774/1 पर कार्रवाई करते हुए प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट बिलासपुर के समक्ष प्रस्तुत किया, जहाँ से अदालत ने उन्हें जेल भेज दिया।
रतनपुर कछुआ प्रकरण के मुख्य तीन संदिग्ध, कार्रवाई के डर से कल से फरार बताए जा रहे हैं। नगर में चर्चा है कि इस कछुआ प्रकरण में वन विभाग की सुस्त कार्रवाई के पीछे ऊपरी राजनीतिक दबाव प्रभावी रहा है। बेहद तेज-तर्रार समझे जाने वाले जांच अधिकारी और रतनपुर वन क्षेत्राधिकारी को जांच के दौरान उनकी ड्यूटी अन्यत्र भेजकर जांच की रफ्तार धीमा करना वन विभाग के आला अधिकारियों की एक सोची-समझी चाल और फरार संदिग्धों को रियायत देने के तौर पर देखा जा रहा है।
वहीं, ट्रस्ट द्वारा बिलासपुर में किए गए प्रेस वार्ता में दिए गए बयान का विरोधाभास, ट्रस्ट के उपाध्यक्ष और एक कर्मचारी के अचानक भूमिगत होने से उभर कर सामने आ गया है। ट्रस्ट ने प्रेस वार्ता में कहा था कि वे जांच में पूरी मदद कर रहे हैं। सवाल उठता है कि जांच से भगाना किस प्रकार का सहयोग करना है?
फिलहाल, फरार संदिग्धों की तलाश में वन विभाग जुटा हुआ है, और कार्रवाई को लेकर उन पर दबाव साफ दिखाई दे रहा है।
स्मरण रहे कि इस ज्वलंत मुद्दे पर माननीय उच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान (suo moto) लिया था और सचिव मत्स्य विभाग, प्रधान मुख्य वन संरक्षक सह मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक, कलेक्टर बिलासपुर, वनमंडलाधिकारी बिलासपुर, सचिव सिद्ध शक्ति पीठ श्री महामाया देवी मंदिर ट्रस्ट, रतनपुर, को 9 अप्रैल तक शपथपत्र देने का आदेश दिया है।
अब इस प्रकरण में वन विभाग कितनी त्वरित कार्रवाई कर भूमिगत संदिग्धों को पकड़ कर न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करता है, और ट्रस्ट इस प्रकरण में जांच में सहयोग करने के अपने दावे पर खरा उतरता है, यह देखना बाकी है।